रामराज्य
आवाज़
लगाई किसी ने
रामराज्य
आ गया !
मैंने
देखा सचमुच वर्षों बीत गये
सबके
चेहरों पर चमक है
आज़ादी
और बेफ़िक्री की
सब
लोग घूम रहे हैं बेखौफ़
जैसे
अभी मिली हो आज़ादी-सचमुच
कहीं
कोई बम बिस्फ़ोट नहीं
कोई
ट्रेन हादसा नहीं ।
कहीं
कोई मन्दिर नापाक नहीं हुआ
आतंकी
इरादों से ।
नहीं
लूटी गई आबरू
किसी
भी देवी की ।
कोई
बच्चा अनाथ नहीं हुआ
धर्म,
क्षेत्र और भाषा के नाम पर
कहीं
दंगा नहीं हुआ ।
और
देखा…..
बोडोलैण्ड
खुश है अपने क्षेत्र में
शांत
हो गए हैं नक्सली
माओवादी
तो जैसे कभी थे ही नहीं
कभी
नहीं इस देश में ।
पुलिस
, पत्रकार और न्यूज़ चैनल वाले तो
बेरोज़गार
हैं जैसे ।
कोई
अपराध समाचार नहीं
कोई
अपराधी नहीं ।
वर्षों
से कोई फ़िल्म नहीं बनी
लज्जा
और क्रांतिवीर जैसी ।
और
जो देखा अद्भुद था…
गांधी,
नेहरू ,अम्बेडकर की आत्माएँ
देख
रहीं हैं स्वर्ग से
और
प्रसन्नचित्त थी
फिर
से जिजीविषा जाग उठी उनमें ।
भगत,
आज़ाद और सुभाष भी
देख
रहे थे और
हो
रहा था गर्व उनको
अपने
बलिदान पर ।
कारागार
में दी गई
हर
एक यातनाएँ जैसे
शुकून
दे रहीं थी उनको ।
देश
का हर नौजवान
भगत
और आज़ाद हो गया था ।
नौबत
नहीं आई फिर से
’लज्ज’
और ’कितने पाकिस्तान’ लिखने की
फिर
कोई इंडियन मुजाहिद्दीन नहीं बना
बस
सब इंडियन ही रहे ।
और
देखा दस्तक दे रहा है नया साल
नई
उमंग, नई तरंग
शांति,
सुख, सद्भावना, समता
और
कुछ नहीं…
आवाज़
आई तभी
खुल
गई नीद, टूट गया सपना
किसी
ने कहा…
विस्फोट
कर दिया आतंकवादियों ने
आरती
में वाराणसी के गंगा घाट पर
समाप्त
हो गई जीवनलीला
एक
मासूम सहित कईयों की ।
तुलसी
का रामराज्य
था
एक यूटिपिआ
और
मेरा सपना..
सचमुच
सपना ही था ।
पर
यह सपना शायद…..!
दीपक कुमार ’पुष्प’