Saturday, September 7, 2013

कैसे हम स्कूल हैं जाते

कैसे हम स्कूल हैं जाते
                                           प्रियंका-आठवीं ‘ब’
                                            के.वि.नं.2,दिल्ली कैंट

देखा अंकल कभी आपने
कैसे हम स्कूल हैं जाते ।

घर से बाहर हमें भेजकर,
निश्चिंत मम्मी पापा हो जाते ।

हम नन्हें मुन्हें सुकुमार,
कैसे कैसे कष्ट उठाते ।

भारी बस्ता लाद पीठ पर,
बोझ से हम दोहरे हो जाते ।

एक रिक्शे में बारह-चौदह,
बोरों जैसे ठूँसे जाते ।

ऊँचाई पर चढ़ न पाता,
तब रिक्शे को हम धकियाते ।

मुख्य मार्ग की भीड़-भाड़ में,
पल-पल खतरा हमीं उठाते ।

सरदी सहते, गरमी सहते,
भीग वर्षा में तर हो जाते ।

तब भी अंकल हम साहसी,
कभी न रोते, न घबराते ॥