कैसे हम स्कूल हैं जाते
प्रियंका-आठवीं ‘ब’
के.वि.नं.2,दिल्ली कैंट
देखा अंकल कभी आपने
कैसे हम स्कूल हैं जाते ।
घर से बाहर हमें भेजकर,
निश्चिंत मम्मी पापा हो जाते ।
हम नन्हें मुन्हें सुकुमार,
कैसे कैसे कष्ट उठाते ।
भारी बस्ता लाद पीठ पर,
बोझ से हम दोहरे हो जाते ।
एक रिक्शे में बारह-चौदह,
बोरों जैसे ठूँसे जाते ।
ऊँचाई पर चढ़ न पाता,
तब रिक्शे को हम धकियाते ।
मुख्य मार्ग की भीड़-भाड़ में,
पल-पल खतरा हमीं उठाते ।
सरदी सहते, गरमी सहते,
भीग वर्षा में तर हो जाते ।
तब भी अंकल हम साहसी,
कभी न रोते, न घबराते ॥
प्रियंका-आठवीं ‘ब’
के.वि.नं.2,दिल्ली कैंट
देखा अंकल कभी आपने
कैसे हम स्कूल हैं जाते ।
घर से बाहर हमें भेजकर,
निश्चिंत मम्मी पापा हो जाते ।
हम नन्हें मुन्हें सुकुमार,
कैसे कैसे कष्ट उठाते ।
भारी बस्ता लाद पीठ पर,
बोझ से हम दोहरे हो जाते ।
एक रिक्शे में बारह-चौदह,
बोरों जैसे ठूँसे जाते ।
ऊँचाई पर चढ़ न पाता,
तब रिक्शे को हम धकियाते ।
मुख्य मार्ग की भीड़-भाड़ में,
पल-पल खतरा हमीं उठाते ।
सरदी सहते, गरमी सहते,
भीग वर्षा में तर हो जाते ।
तब भी अंकल हम साहसी,
कभी न रोते, न घबराते ॥