Saturday, March 8, 2014

विश्व महिला दिवस के अवसर पर....



नारी की करुण कथा
नारी की करुण कथा   सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
नौ माह पेट   में  लहू  दिया,
फिर लहू खून बनकर निकला ।
इक पल के लिए पलकें न लगीं,
जब मिला तो आँसू बह निकला ।
तुमने जब  पहला  कदम रखा,
सुख का  सारा  संसार   मिला,
हर  बार  यकीन  किया  उसने,
चाहे  तू  जितनी  बार  छला ।
आँसू  तो  सूख  गए  उसके ,
युग युग से हृदय द्रवित रोता ।
नारी की करुण कथा   सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
जब रोया था खुद से छुपकर,
तब बड़ी बहन का प्यार दिया ।
पढ़ने न गई जब तू रोया,
तुझको अपना अधिकार दिया ।
खुशियाँ देकर अपने हक की,
तुझको सुख का संसार दिया ।
रक्षा  के  लिए  रक्षा  बाँधा ,
पर उसको आँसू की धार दिया ।
अब  भी  वह  ब्रत  रखती है ,
जग उसके लिए गम कब ढ़ोता ।
नारी की करुण  कथा  सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
बन प्रिया जब जीवन में आई,
लगा ज्यों मन में फूल खिला ।
सारा  जग  सुंदर बना  दिया,
सपनों  का  सा  संसार मिला ।
मन स्वच्छ हुआ,तन स्वच्छ हुआ,
अब कोई भी शिकवा  न गिला ।
मन मस्त  मयूर सा  नृत्य करे,
बन गई  मूरत  पाषाण शिला ।
पर प्रीत  का  जग  बैरी हो तो,
सच सपनों  को कब  होने देता ।
नारी की करुण कथा  सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
पत्नी बनकर जब  वह आई,
उसने जीवन का भार लिया ।
स्वर्ग किया  घर  को उसने,
लक्ष्मी का सा अवतार लिया ।
पग-पग पर सुख-दुख को झेला,
हर गम में खुद को ढ़ाल लिया ।
खुद को खोजा पति के सपनों में,
अपने  सपनों  को  वार दिया ।
पत्नी की  त्याग  तपस्या  को,
जग भूल  गया  कहकर छोटा ।
नारी की करुण कथा   सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
जब जन्म लिया बेटी बनकर,
गूँजी आँगन  में  किलकारी ।
जब फूल सी हँसती द्वारे पर,
खिल उठती जीवन की क्यारी ।
जो मिला खुशी से  अपनाया,
माँ-बाप की गुड़िया वह प्यारी ।
तितली, जुगनू  उसके  साथी ,
ख्वाबों की  करती  असवारी ।
जब ब्याह जोग होती बिटिया,
जग हो  जाता  है व्यापारी ।
बिटिया की शादी से ज्यादा,
अनजाने  डर से दिल रोता ।
नारी की करुण कथा   सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
माँ,बहन,प्रिया, पत्नी, बेटी,
नारी के कितने रूप यहाँ ।
हर रूप में छली गई सृष्टि,
पर जग को इसका भान कहाँ ।
दादी, नानी  के  किस्सों में,
परियों का वह संसार कहाँ ।
ममता, रक्षा, खुशबू, जीवन,
तितली का रूप अनूप कहाँ ।
नारी का  कर्ज  चुकाने को ,
नर का है कितना कद छोटा ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।