नारी की करुण कथा
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
नौ माह पेट में लहू दिया,
फिर लहू खून बनकर निकला ।
इक पल के लिए पलकें न
लगीं,
जब मिला तो आँसू बह निकला
।
तुमने जब पहला कदम रखा,
सुख का सारा संसार मिला,
हर बार यकीन
किया उसने,
चाहे तू जितनी
बार छला ।
आँसू तो सूख गए उसके
,
युग युग से हृदय द्रवित
रोता ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
जब रोया था खुद से छुपकर,
तब बड़ी बहन का प्यार दिया
।
पढ़ने न गई जब तू रोया,
तुझको अपना अधिकार दिया ।
खुशियाँ देकर अपने हक की,
तुझको सुख का संसार दिया
।
रक्षा के लिए रक्षा बाँधा ,
पर उसको आँसू की धार दिया
।
अब भी वह ब्रत रखती
है ,
जग उसके लिए गम कब ढ़ोता ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
बन प्रिया जब जीवन में
आई,
लगा ज्यों मन में फूल
खिला ।
सारा जग सुंदर
बना दिया,
सपनों का सा संसार मिला ।
मन स्वच्छ हुआ,तन स्वच्छ
हुआ,
अब कोई भी शिकवा न गिला ।
मन मस्त मयूर सा नृत्य करे,
बन गई मूरत पाषाण शिला ।
पर प्रीत का जग बैरी हो तो,
सच सपनों को कब होने
देता ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
पत्नी बनकर जब वह आई,
उसने जीवन का भार लिया ।
स्वर्ग किया घर को
उसने,
लक्ष्मी का सा अवतार लिया
।
पग-पग पर सुख-दुख को
झेला,
हर गम में खुद को ढ़ाल
लिया ।
खुद को खोजा पति के सपनों
में,
अपने सपनों को वार
दिया ।
पत्नी की त्याग तपस्या को,
जग भूल गया कहकर
छोटा ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
जब जन्म लिया बेटी बनकर,
गूँजी आँगन में किलकारी
।
जब फूल सी हँसती द्वारे
पर,
खिल उठती जीवन की क्यारी
।
जो मिला खुशी से अपनाया,
माँ-बाप की गुड़िया वह
प्यारी ।
तितली, जुगनू उसके साथी ,
ख्वाबों की करती असवारी ।
जब ब्याह जोग होती
बिटिया,
जग हो जाता है
व्यापारी ।
बिटिया की शादी से
ज्यादा,
अनजाने डर से दिल रोता ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।
माँ,बहन,प्रिया, पत्नी, बेटी,
नारी के कितने रूप यहाँ ।
हर रूप में छली गई
सृष्टि,
पर जग को इसका भान कहाँ ।
दादी, नानी के किस्सों
में,
परियों का वह संसार कहाँ
।
ममता, रक्षा, खुशबू, जीवन,
तितली का रूप अनूप कहाँ ।
नारी का कर्ज चुकाने
को ,
नर का है कितना कद छोटा ।
नारी की करुण कथा सुनकर,
अफ़सोस न क्या जग को होता ।