Saturday, November 14, 2015

हमारा हिस्सा



हमारा हिस्सा

शहर के कचरे का ढ़ेर
बजबजाती सड़ांध
नन्हे नन्हे पैर गंदगी को नापते
असीमित आशा मन में
आशाभरी नज़रें
कचरे में ढूँढ़ती
अपने काम की चीज़
नाज़ुक हाथ तलाशते हैं,
दो वक्त को, जो ज़रूरत है,
हर प्राणी की ।
कर जाते हैं अनगिनत सवाल
हम सबसे...
रोटी कहाँ है हमारे हिस्से की ?
कहाँ बँट गया बाल दिवस,
हमारे जीवन का ?
क्यों नहीं पहुँची किताबें
हम तक ?
कम पड़ गए स्कूल क्यों
हमारे लिए ?
क्यों नहीं चुभते हैं आँखों में सबके
ये सारे त्योहार औरे दिवस,
हम नहीं होते जिनमें ?
कैसे मना लेते हैं बाल दिवस,
शिक्षक दिवस और शिक्षा दिवस बिना हमारे ?
तिरंगे का रंग
क्यों नहीं माँगता है जवाब,
हमारे न शामिल होने का ,
स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस में ?
कहाँ हैं हम ?
कहाँ है हिस्सा इस देश में हमारा ?
हैं भी कि नहीं ?
पिछले अड़सठ साल से यही प्रश्न !
पर कोई उत्तर नहीं....!
(दीपक ) 14/11/2015

Saturday, May 9, 2015

महँगाई और भ्रष्टाचार



महँगाई और भ्रष्टाचार
देखो आई-आई-आई,
महँगाई आई ।
जाने कौन से देश से आई,
है ये महँगाई ।
अमीरों को गरीब बना दे,
गरीबों को फ़कीर ।
सबकी गरीबी का स्वागत करने आई,
देखो यह महँगाई ।
सब्ज़ी, फल, दूध के दाम बढ़ाने आई,
बच्चों की लालसा पर अपना हक जताने आई ।
बड़ों के काम के पैसों पर अपनी नज़र गड़ाने आई ,
देखो यह महँगाई ।
अपने साथ अपने भाई को भी है लाई,
बड़े से बड़ा, छोटे से छोटे नेता की पोल खोलने आई ,
देखो यह महँगाई ।
अब आई भ्रष्टाचार की बारी ,
अपनी बहन को विदा कर, अपनी राजगद्दी बनाने आया ।
यह तो अपने भाई को भी पीछे छोड़ आया ।
देखो यह महँगाई का भाया ।
इसने भी है भारी धूम मचाई, बहुतों के राज खोलने आया ।
भारत महान के नारे को झूठा बताने आया ।
देखो यह महँगाई का भाया ।
मेरा संदेश है सिर्फ़ इतना,
                                                       भ्रष्ट मत बनना, महँगाई से बचना 

आकांक्षा पारिजात 
कक्षा- नवीं
के.वि.नं.२,दिल्ली छावनी

माँ (आकांक्षा पारिजात)



माँ
क्यों झेलना पड़ता है इन्हें हर दुख ।
क्यों नहीं है इनकी सिस्मत में सुख ।
कभी बच्चे रहते बैर, कभी पति रहते बैर,
सबको सिर्फ़ यह मनाती, फिर भी सब लेते इनकी खैर ।
क्यों है इनकी हालत ऐसी,
कहाँ चली गई  इनकी शक्ति दुर्गा जैसी ।
क्यों यह घरों में सहमी सी रहती हैं ।
क्यों इनकी आवाज़ आंदोलन के लिए नहीं उठती है ।
कौन है ओ जो इन्हे डराकर रखता है,
दहेज के नाम पर हर ज़ुर्म इनपर थोपता है ।
माँ तुम उठो और लड़ो, डरो मत यह समाज अपना है ।
बेटियों को पैदा करने के लिए हर माँ ने साहस दिखाया है ।
यह समाज है सिर्फ़ लोभी, पैसे दो तो खोलेंगे मुँह ढ़ोंगी,
समाज का काम है कहना, पर अन्याय होते समय,
तुम मत बन जाना गूँगी ॥

                                     आकांक्षा परिजात
                                  कक्षा- नवीं
                                    के.वि.२,दिल्ली छावनी